Vedic Poojan

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पूजन

पूजा (पूजन) क्या है?

सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं।

पूजा का अर्थ आराधना है। आप इसे सम्मान करना, सादर स्वागत करना या आदर पूर्वक भेंट चढ़ाना भी कह सकते हैं| यज्ञ को छोड़कर लोग जब मूर्ति बनाने लगे तो पूजा-पाठ भी शुरू हो गया। पूजा करने वाले व्यक्ति को ईश्वर का पुजारी कहा जाता है। जहां पूजा की जाती है उसे पूजा स्थल कहा जाता है, मंदिर नहीं। वैदिक काल से ही अग्नि, सूर्य, वरुण, रूद्र, इंद्र इत्यादि देवताओं एवं दिव्य शक्तियों का पूजन होता रहा है तथा इनसे प्राप्त चमत्कारिक उपलब्धियों से इतिहास भरा पड़ा है |

सामान्य पूजा की सामग्री-:-

धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपूर, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टे, धनिया खड़ा, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगाजल, शहद, शकर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतुफल, नैवेद्य या मिष्ठान्न ,इलायची (छोटी), लौंग मौली, इत्र की शीशी, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव(बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत, तुलसी दल, केले के पत्ते, औषधि , (जटामॉसी, शिलाजीत आदि), श्री सत्यनारायणजी का पाना , (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, अम्बिका की मूर्ति, सत्यनारायण को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश, सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बन्दनवार, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूँ), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि, अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र.

पूजा से सम्बंधित जरूरी नियम:-

पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां कुछ ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।

  • सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।

  • शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

  • मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।

  • सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

  • तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

  • प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।

  • स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

  • मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

  • केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।

  • किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।

  • दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।

  • मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ा सकते हैं।

  • शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।

  • तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है

  • आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।

  • तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

  • हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

  • बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

  • पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।

  • पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

  • घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

  • पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।

  • भगवान की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।

  • पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

  • गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।

  • अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।

  • मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता –पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

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सेक्स क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियां :

  • अश्वगंधा  :
    आयुर्वेद के अनुसार अश्वगंधा एक रसायन औषधि है और यह पुरुषों के शरीर में सभी धातुओं की मात्रा बढ़ा देती है। इसके सेवन से खासतौर पर शुक्र धातु की मात्रा काफी बढ़ जाती है। इसके नियमित सेवन से शरीर की उर्जा बढ़ती है, वीर्य बढ़ता है और सेक्स के दौरान आप जल्दी थकते नहीं हैं।
  • शिलाजीत  :
    आयुर्वेद में शिलाजीत को शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक औषधि माना गया है। यह शरीर की यौनशक्ति बढ़ाने में बहुत उपयोगी है। इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए इसके सेवन के दौरान ज्यादा तली भुनी चीजें,खटाई और अधिक नमक वाली चीजों से परहेज करना चाहिए। सेक्स के दौरान अगर आपको ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही है तो आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार शिलाजीत का सेवन तुरंत शुरु कर दें।
  • सफेद मूसली  :
    सफेद मूसली एक ऐसी जड़ी बूटी है जो सेक्स पावर बढ़ाने के लिए बहुत प्रचलित है, इसे हर्बल वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है। सफेद मूसली का इस्तेमाल यूनानी, होम्योपैथी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में काफी पहले से होता रहा है। यह एक प्रकार की जड़ें होती हैं। इसे यौन दुर्बलता, नपुंसकता और शीघ्रपतन जैसी बीमारियों के इलाज में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार सफेद मूसली मुख्य रुप से वात और पित्त दोष पर काम करती है और कफ दोष को बढ़ाती है।
  • त्रिफला  :
    आमला, बहेड़ा और हरड इन तीन तरह के औषधियों के मिश्रण को त्रिफला कहा जाता है। यह वजन कम करने, कब्ज़ दूर करने के अलावा सेक्स पावर बढ़ाने में बहुत असरकारक औषधि मानी जाती है। इसे चूर्ण के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। जो लोग सेक्स करते समय बहुत जल्दी थक जाते हैं उन्हें इस जड़ी बूटी का सेवन नियमित रुप से करना चाहिए। प्रायः ऐसा देखा गया है कि सेक्स से जुड़ी कई समस्याएं पाचन तंत्र में खराबी की वजह से होती हैं. ऐसे में आप त्रिफला का इस्तेमाल पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए भी कर सकते हैं.
  • कौंच बीज चूर्ण  :
    यह झाड़ियों में पाए जाने वाला एक औषधीय पौधा है। इस पौधे के बीजों का इस्तेमाल सेक्स पॉवर बढ़ाने और नपुंसकता के इलाज में किया जाता है। जो लोग सेक्स करते समय बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस कर रहे हैं उनके लिए यह औषधि एक वरदान की तरह है। आयुर्वेद के अनुसार कौंच के बीजों का स्वभाव गुरु और स्निग्ध होता है और इसे वातनाशक और कफपित्तवर्धक माना जाता है।

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